सोमवार, 17 जनवरी 2022

लोकनायक बिरसा मुंडा जीवनी/ Birsa Munda Ki Jivani in hindi/ Biography of Birsa Munda in hindi


 

                                                            "लोकनायक बिरसा मुंडा जीवनी...

 

                   


☞"बिरसा मुंडा  एक आदिवासी नेता और लोकनायक थे। ये मुंडा जाति से सम्बन्धित थे। वर्तमान भारत में रांची और सिंहभूमि के आदिवासी बिरसा मुंडा को अब 'बिरसा भगवान' कहकर याद करते हैं। मुंडा आदिवासियों को अंग्रेज़ों के दमन के विरुद्ध खड़ा करके बिरसा मुंडा ने यह सम्मान अर्जित किया था। 19वीं सदी में बिरसा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक मुख्य कड़ी साबित हुए थे।


☞"बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को रांची जिले के उलिहतु गाँव में हुआ था !! मुंडा रीती रिवाज के अनुसार उनका नाम बृहस्पतिवार के हिसाब से बिरसा रखा गया था | बिरसा के पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी हटू था | उनका परिवार रोजगार की तलाश में उनके जन्म के बाद उलिहतु से कुरुमब्दा आकर बस गया जहा वो खेतो में काम करके अपना जीवन चलाते थे | उसके बाद फिर काम की तलाश में उनका परिवार बम्बा चला गया 


☞"Birsa Munda बिरसा का परिवार वैसे तो घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करता था लेकिन उनका अधिकांश बचपन चल्कड़ में बीता था | बिरसा बचपन से अपने दोस्तों के साथ रेत में खेलते रहते थे और थोडा बड़ा होने पर उन्हें जंगल में भेड़ चराने जाना पड़ता था | जंगल में भेड़ चराते वक़्त समय व्यतीत करने के लिए बाँसुरी बजाया करते थे और कुछ दिनों बाँसुरी बजाने में उस्ताद हो गये थे | उन्होंने कद्दू से एक एक तार वाला वादक यंत्र तुइला बनाया था जिसे भी वो बजाया करते थे | उनके जीवन के कुछ रोमांचक पल अखारा गाँव में बीते थे 


☞"गरीबी के इस दौर में Birsa Munda बिरसा को उनके मामा के गाँव अयुभातु  भेज दिया गया | अयुभातु में बिरसा दो साल तक रहे और वहा के स्कूल में पढने गये थे | बिरसा पढाई में बहुत होशियार थे इसलिए स्कूल चलाने वाले जयपाल नाग ने उन्हें जर्मन मिशन स्कूल में दाखिला लेने को कहा | अब उस समय क्रिस्चियन स्कूल में प्रवेश लेने के लिए इसाई धर्म अपनाना जरुरी हुआ करता था तो बिरसा ने धर्म परिवर्तन कर अपना नाम बिरसा डेविड रख दिया जो बाद में बिरसा दाउद हो गया था |


🔴"लोगों का विश्वास...✍️


☞"इसके बाद बिरसा के जीवन में एक नया मोड़ आया। उनका स्वामी आनन्द पाण्डे से सम्पर्क हो गया और उन्हें हिन्दू धर्म तथा महाभारत के पात्रों का परिचय मिला। यह कहा जाता है कि 1895 में कुछ ऐसी आलौकिक घटनाएँ घटीं, जिनके कारण लोग बिरसा को भगवान का अवतार मानने लगे। लोगों में यह विश्वास दृढ़ हो गया कि बिरसा के स्पर्श मात्र से ही रोग दूर हो जाते हैं।


🔴"प्रभाव में वृद्धि....✍️


☞"जन-सामान्य का बिरसा में काफ़ी दृढ़ विश्वास हो चुका था, इससे बिरसा को अपने प्रभाव में वृद्धि करने में मदद मिली। लोग उनकी बातें सुनने के लिए बड़ी संख्या में एकत्र होने लगे। बिरसा ने पुराने अंधविश्वासों का खंडन किया। लोगों को हिंसा और मादक पदार्थों से दूर रहने की सलाह दी। उनकी बातों का प्रभाव यह पड़ा कि ईसाई धर्म स्वीकार करने वालों की संख्या तेजी से घटने लगी और जो मुंडा ईसाई बन गये थे, वे फिर से अपने पुराने धर्म में लौटने लगे।


🔴"मुंडा विद्रोह का नेतृत्‍व...✍️


☞"1 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग "धरती बाबा" के नाम से पुकारा और पूजा जाता था। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी।


🔴"विद्रोह में भागीदारी और अन्त...✍️


☞"1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।


☞"जनवरी 1900 डोमबाड़ी पहाड़ी पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत से औरतें और बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये।

☞"बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 को राँची कारागार में लीं। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।


🔴"द मेकिंग ऑफ अ पैगम्बर...✍️


☞"बिरसा का दावा है कि ईश्वर का दूत और एक नए धर्म के संस्थापक ने मिशन के प्रति असंतुष्ट प्रतीत किया है। उनके संप्रदाय में भी ईसाई धर्म से प्रेरित थे, ज्यादातर सरदार उनकी सरल व्यवस्था की व्यवस्था को चर्च के खिलाफ निर्देशित किया गया था, जिसने कर लगाया था। और एक भगवान की अवधारणा ने अपने लोगों से अपील की, जिन्होंने अपने धर्म और आर्थिक धर्म के मरहम लगाने वाले, एक चमत्कार-कार्यकर्ता और एक प्रचारक को तथ्यों के सभी अनुपात से फैल दिया। मुदास, ओरेन्स और खरिया, नए भविष्यद्वक्ता को देखने के लिए चालाक के पास आये और उनकी बीमारियों से ठीक हो जाए। पारामौ में बारवरी और चचेरी तक ओरोन और मुंडा आबादी दोनों ही बिरसाइटी बन गए। 


☞"समकालीन और बाद में लोक गीत अपने लोगों पर बिरसा के जबरदस्त प्रभाव, उनके आगमन और उनके आगमन पर उम्मीदों को स्मरण करते हैं। धरती अबा का नाम हर किसी के होंठ पर था सदानी में एक लोक गीत ने दिखाया कि जाति हिंदुओं और मुस्लिमों की तर्ज पर पहला प्रभाव कटौती भी धर्म के नए सूर्य की ओर आते थे।


☞"बिरसा मुंडा ने आदिवासी लोगों को अपने मूल पारंपरिक आदिवासी धार्मिक व्यवस्था का पीछा करने के लिए सलाह देना शुरू कर दिया। उनकी शिक्षाओं से प्रभावित, वह आदिवासी लोगों के लिए एक भविष्यवक्ता बन गया और उन्होंने उनके आशीर्वाद मांगे

☞"बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें 9 जून 1900 को राँची कारागार में लीं। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।


🔴"द मेकिंग ऑफ अ पैगम्बर...✍️


☞"बिरसा का दावा है कि ईश्वर का दूत और एक नए धर्म के संस्थापक ने मिशन के प्रति असंतुष्ट प्रतीत किया है। उनके संप्रदाय में भी ईसाई धर्म से प्रेरित थे, ज्यादातर सरदार उनकी सरल व्यवस्था की व्यवस्था को चर्च के खिलाफ निर्देशित किया गया था, जिसने कर लगाया था। और एक भगवान की अवधारणा ने अपने लोगों से अपील की, जिन्होंने अपने धर्म और आर्थिक धर्म के मरहम लगाने वाले, एक चमत्कार-कार्यकर्ता और एक प्रचारक को तथ्यों के सभी अनुपात से फैल दिया। मुदास, ओरेन्स और खरिया, नए भविष्यद्वक्ता को देखने के लिए चालाक के पास आये और उनकी बीमारियों से ठीक हो जाए। पारामौ में बारवरी और चचेरी तक ओरोन और मुंडा आबादी दोनों ही बिरसाइटी बन गए। 


☞"समकालीन और बाद में लोक गीत अपने लोगों पर बिरसा के जबरदस्त प्रभाव, उनके आगमन और उनके आगमन पर उम्मीदों को स्मरण करते हैं। धरती अबा का नाम हर किसी के होंठ पर था सदानी में एक लोक गीत ने दिखाया कि जाति हिंदुओं और मुस्लिमों की तर्ज पर पहला प्रभाव कटौती भी धर्म के नए सूर्य की ओर आते थे।


☞"बिरसा मुंडा ने आदिवासी लोगों को अपने मूल पारंपरिक आदिवासी धार्मिक व्यवस्था का पीछा करने के लिए सलाह देना शुरू कर दिया। उनकी शिक्षाओं से प्रभावित, वह आदिवासी लोगों के लिए एक भविष्यवक्ता बन गया और उन्होंने उनके आशीर्वाद मांगे

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