सोमवार, 31 जनवरी 2022

मंगल पांडे/ Facts About Mangal Pandey in Hindi/ Biography of Mangal Pandey in hindi

 



                                  "मंगल पांडे-भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी"


                       


☞"मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वोे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34 वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया।


☞"मंगल पाण्डेय


जन्म:-19 जुलाई 1827

नगवा,बलिया, भारत

पूर्ण नाम:- मंगल  पांडे

राष्ट्रीयता:- भारतीय

मृत्यु:-8 अप्रैल 1857, बैरकपुर भारत

व्यवसाय:-बैरकपुर छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैण्ट्री की 34 वीं रेजीमेण्ट में सिपाही

प्रसिद्धि कारण:-भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी

धार्मिक मान्यता:-हिन्दू


मंगल पाण्डेय ने इसी एन्फील्ड राइफल का प्रयोग 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में किया था


🔴"जीवन परिचय....✍️


☞"मंगल पाण्डेय का जन्म भारत में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में 19 जुलाई 1827 को एक "भूमिहार ब्राह्मण" परिवार में हुआ था। हांलाकि कुछ इतिहासकार इनका जन्म-स्थान फैज़ाबाद के गांव सुरहुरपुर को मानते हैं।


☞"इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। जमींदार ब्राह्मण को भूमिहार कहा जाता है। "भूमिहार ब्राह्मण" होने के बाद भी मंगल पाण्डेय सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए।


🔴"1857 का विद्रोह...✍️


☞"विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न 1853 एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि 0.577 कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। 


☞"नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है।


☞"29 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय जो दुगवा रहीमपुर(फैजाबाद) के रहने वाले थे रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन में थे जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद ने मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास किया। परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।


🔴"विद्रोह का परिणाम...✍️


☞"सन् 1857 के सैनिक विद्रोह की एक झलक :- मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं। एक महीने बाद ही १० मई सन् १८५७ को मेरठ की छावनी में बगावत हो गयी। यह विप्लव देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे। इसके बाद ही हिन्दुस्तान में चौंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी कानून यहाँ की जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय सरीखा कोई सैनिक दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके।



🔺"मंगल पाण्डेय जीवनी"🔺


 ☞"वीरवर मंगल पाण्डेय का जन्म 30 जुलाई 1827 को वर्तमान उत्तर प्रदेश, जो उन दिनों संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध के नाम से जाना जाता था, के बलिया जिले में स्थित नगवा गाँव के एक सामान्य परंतु प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राम्हण परिवार में हुआ था। स्वाधिनता की वेदी पर पहला बलिदान ब्रितानी साम्राज्य के वफादार, चतुर व्यापारी, जो भारत में आए तो व्यापार करने थें, लेकिन इस देश में चल रही फूट ने उन्हे इस पर राज करने की जिप्सा जगा दिया। 


☞"सन् 1757 ई0 से ब्रिटिशों के गुलाम बने भारत में सौ वर्षों बाद इस दासता से मुक्ति के लिए सामूहिक संघर्ष करने की स्थितियंा बन पायी। 1857 ई0 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को जन-जन का मुक्ति संग्राम बनाने लिए हमारे रणनीतिकारों ने बड़े ही व्यापक पैमाने पर तैयारी भी किया था। इस समवेत मुक्ति संग्राम को आरम्भ करने की तिथि भी इसके नायकों द्वारा 31 मई 1857 निर्धारित की गयी थी। लेकिन इस तिथि से दो माह पूर्व ही गंगा की उर्वर मिट्टी में पड़ा क्रान्ति बीज फूट पड़ा। 


☞"29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी (कलकत्ता) में इस संग्राम के अग्रइल, आगरा-अवध प्रान्त (अब उत्तर प्रदेश) के गाजीपुर जिले (अब बलिया जिला) की बलिया तहसील के नगवा गंाव निवासी, अंग्रेजी फौज की 34 नम्बर देशी सेना की 39वीं पलटन के 1446 नम्बर सिपाही श्री मंगल पाण्डे ने सेना के दो अधिकारियों मि बाॅफ और मि. ह्यूसन को मौत के घाट उतार कर, स्वाधिनता की बलिवेदी पर अपना स्थान आरक्षित कर लिया। वो सन 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए। मंगल बैरकपुर की सैनिक छावनी में “34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री” की पैदल सेना में एक सिपाही थे।


☞"ईस्ट इंडिया कंपनी की रियासत व राज हड़प और फिर इशाई मिस्नरियों द्वारा धर्मान्तर आदि की नीति ने लोगों के मन में अंग्रेजी हुकुमत के प्रति पहले ही नफरत पैदा कर दी थी और जब कंपनी की सेना की बंगाल इकाई में ‘एनफील्ड पी.53’ राइफल में नई कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ तो मामला और बिगड़ गया। इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था और भारतीय सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई कि इन कारतूसों को बनाने में गाय तथा सूअर की चर्बी का प्रयोग किया जाता है। उनके मन में ये बात घर कर गयी कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों का धर्म भ्रष्ट करने पर अमादा हैं क्योंकि ये हिन्दू और मुसलमानों दोनों के लिए नापाक था।


☞"Mangal Pandey एक ऐसे भारतीय सैनिक थे जिन्होंने 29 मार्च 1857 को ब्रिटिश अधिकारियो पर हमला किया था. उस समय यह पहला अवसर था जब किसी भारतीय ने ब्रिटिश अधिकारी पर हमला किया था. (बाद में भारत में इस घटना की आज़ादी की पहली लढाई के नाम से भी जाना जाने लगा). हमले के कुछ समय बाद ही उन्हें फ़ासी की सजा सुनाई गयी. और कुछ दिन बाद उन्हें फांसी दे दी गयी, लेकिन फांसी देने के बाद भी ब्रिटिश अधिकारी उनके पार्थिव शरीर के पास जाने से भी डर रहे थे.


☞"भारत में, मंगल पांडे एक महान क्रांतिकारी के नाम से जाने जाते है. जिन्होंने ब्रिटिश कानून का विरोध किया. भारत सरकार द्वारा 1984 में उनके नाम के साथ ही उनके फोटो का एक स्टेम्प भी जारी किया. वे पहले स्वतंत्रता क्रांतिकारी थे जिन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश कानून का विरोध किया था. मंगल पांडे चर्बी युक्त कारतूसो के खिलाफ थे. वे भली-भांति जानते थे की ब्रिटिश अधिकारी, हिंदु सैनिको और ब्रिटिश सैनिको में भेदभाव करते थे. इन सब से ही परेशान होकर उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियो से लढने का बीड़ा उठाया. उन्होंने आज़ादी की लड़ाई की चिंगारी भारत में लगाई थी जिसने बाद में एक भयंकर रूप धारण कर लिया था. और अंत में भारतीयों से हारकर अंग्रेजो को भारत छोड़ना ही पड़ा.

 

☞"अंग्रेजी हुकूमत ने 6 अप्रेल को फ़ैसला सुनाया कि मंगल पाण्डे को 18 अप्रेल को फ़ांसी पर चढा दिया जाये. परन्तु बाद में यह तारीख 8 अप्रेल कर दी गई ताकि विद्रोह की आग अन्य रेजिमेन्टों में भी न फ़ैल जाये. मंगल पाण्डे के प्रति लोगों में इतना सम्मान पैदा हो गया था कि बैरकपुर का कोई जल्लाद फ़ांसी देने को तैयार नहीं हुआ. नजीतन कल्कत्ता से चार जल्लाद बुलाकर मंगल पाण्डे को 8 अप्रेल, 1857 के दिन फ़ांसी पर चढा दिया गया. मंगल पाण्डे को फ़ांसी पर चढाकर अंग्रेजी हुकूमत ने जिस विद्रोह की चिंगारी को खत्म करना चाहा, वह तो फ़ैल ही चुकी थी और देखते ही देखते इसने पूरे देश को अपने आगोश में ले लिया.

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