महाराणा सांगा की पूरी कहानी
महाराणा सांगा (संग्राम सिंह) मेवाड़ के सबसे वीर और पराक्रमी राजाओं में से एक थे। वे अपनी बहादुरी, युद्ध कौशल और दृढ़ संकल्प के लिए प्रसिद्ध थे। आइए उनकी पूरी कहानी को क्रमबद्ध तरीके से जानते हैं:
1. प्रारंभिक जीवन और राज्याभिषेक (1482 - 1509)
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महाराणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 को मेवाड़ के सिसोदिया वंश में हुआ था।
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वे राणा रायमल के पुत्र थे और उनके दो भाई पृथ्वीराज और जगमाल भी थे।
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गद्दी के लिए संघर्ष में उन्होंने अपने भाइयों से युद्ध किया और अंततः 1509 में मेवाड़ की गद्दी संभाली।
 
2. युद्ध और पराक्रम (1509 - 1527)
महाराणा सांगा ने अपने शासनकाल में कई युद्ध लड़े और अपनी वीरता का परिचय दिया।
1) इब्राहिम लोदी से युद्ध
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1517 में, उन्होंने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को बयाना और ग्वालियर के युद्धों में हराया।
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इस जीत ने उनकी शक्ति को और बढ़ाया।
 
2) गुजरात के सुल्तान से युद्ध
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उन्होंने गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह द्वितीय को भी परास्त किया और मालवा पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया।
 
3) खानवा का युद्ध (1527) - बाबर से संघर्ष
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यह युद्ध भारतीय इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण युद्ध था।
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राणा सांगा ने बाबर के खिलाफ एक बड़ी सेना एकत्रित की जिसमें अफगान, राजपूत और अन्य शक्तिशाली योद्धा थे।
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लेकिन बाबर ने अपनी सैन्य रणनीति और तोपखाने के बल पर इस युद्ध को जीत लिया।
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इस युद्ध में महाराणा सांगा को गंभीर चोटें आईं, लेकिन वे जिंदा बच गए।
 
3. वीरगति और निधन (1528)
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खानवा की हार के बाद भी महाराणा सांगा हार नहीं माने।
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उन्होंने दोबारा सेना संगठित करने की योजना बनाई और बाबर से बदला लेने का संकल्प लिया।
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लेकिन उनके कुछ विश्वासपात्र सरदारों ने उन्हें ज़हर दे दिया क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि वे फिर से युद्ध में जाएं।
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1528 में उनका निधन हो गया।
 
4. विरासत और महत्व
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महाराणा सांगा भारतीय इतिहास में एक महान योद्धा के रूप में जाने जाते हैं।
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उनके बलिदान और पराक्रम की कहानियां आज भी राजस्थान और भारत के अन्य हिस्सों में सुनाई जाती हैं।
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वे राजपूतों की आन-बान-शान के प्रतीक माने जाते हैं।
 
निष्कर्ष
महाराणा सांगा ने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया लेकिन कभी अपने स्वाभिमान और धर्म से समझौता नहीं किया। उनकी वीरता और बलिदान भारतीय इतिहास में अमर हैं।

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