भगवद गीता का सार (Bhagavad Gita Ka Saar)
भगवद गीता हिंदू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और महान ग्रंथ है, जो महाभारत के युद्धभूमि में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश का संकलन है। इसका सार संक्षेप में इस प्रकार है:
भगवद गीता का मुख्य सार
कर्तव्य पालन ही धर्म है:
अपने कर्मों का ईमानदारी से पालन करो, फल की चिंता मत करो। कर्म ही पूजा है।आत्मा अमर है:
शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा कभी नहीं मरती। यह सिर्फ शरीर बदलती है, जैसे पुराने कपड़े उतारकर नए पहनते हैं।मोह और अज्ञान से मुक्त हो:
मोह, क्रोध, लोभ और अहंकार को त्यागो। सच्चा ज्ञान वही है, जो आत्मा और परमात्मा को समझने में मदद करे।साम्यभाव अपनाओ:
सुख-दुख, हानि-लाभ, जय-पराजय में समान रहो। जो इन द्वंद्वों से ऊपर उठ जाता है, वही सच्चा योगी है।भक्ति, ज्ञान और कर्मयोग:
भगवान तक पहुंचने के तीन रास्ते हैं -- भक्ति योग: प्रेम और समर्पण से ईश्वर की भक्ति।
- ज्ञान योग: सच्चे ज्ञान के द्वारा आत्मा और परमात्मा की पहचान।
- कर्म योग: निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करना।
हर जीव में भगवान का वास:
हर प्राणी में ईश्वर का अंश है, इसलिए किसी से घृणा मत करो। सबका सम्मान करो।सच्चा त्याग:
कामना से किया गया कर्म बंधन लाता है, लेकिन निस्वार्थ भाव से किया गया कर्म मोक्ष की ओर ले जाता है।शरण में आओ:
जो अपने सारे कर्म ईश्वर को समर्पित करता है और उसकी शरण में आता है, वही परम शांति और मोक्ष को प्राप्त करता है।
अंतिम उपदेश:
"अपना हर कर्म मुझे समर्पित करो, मुझमें चित्त लगाओ, मुझमें लीन हो जाओ, और पूर्ण श्रद्धा के साथ मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें हर पाप से मुक्त कर दूंगा और मोक्ष प्रदान करूंगा।"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें