श्री प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज एक प्रसिद्ध राधावल्लभी संत हैं, जिन्होंने अपना जीवन भगवान श्री राधा-कृष्ण की भक्ति और समाज सेवा को समर्पित किया है।
प्रारंभिक जीवन: महाराज जी का जन्म 1969 में उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सरसौल ब्लॉक के अखरी गाँव में हुआ था। उनका जन्म नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। उनके पिता, श्री शंभूनाथ पांडे, और माता, श्रीमती रमा देवी, दोनों ही अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उनके दादा भी संन्यासी थे, जिससे परिवार का वातावरण आध्यात्मिकता से परिपूर्ण था। बचपन से ही महाराज जी ने धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन और भक्ति में रुचि दिखाई। पाँचवीं कक्षा तक पहुँचते-पहुँचते, उन्होंने गीता प्रेस की 'सुख सागर' जैसी धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन करना शुरू कर दिया था।
संन्यास और आध्यात्मिक यात्रा: 13 वर्ष की आयु में, महाराज जी ने संन्यास ग्रहण कर लिया और उन्हें 'आर्यन ब्रह्मचारी' नाम दिया गया। बाद में, वे वाराणसी में गंगा तट पर आध्यात्मिक साधना में लीन रहे। वृंदावन में, एक संत के आग्रह पर, उन्होंने रास लीला का दर्शन किया, जिससे उनके जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आया। यहाँ उनकी मुलाकात श्री हित गौरांगी शरण जी महाराज से हुई, जिन्होंने उन्हें 'निज मंत्र' प्रदान किया और राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षित किया।
श्री हित राधा केली कुंज ट्रस्ट: 2016 में, महाराज जी ने 'श्री हित राधा केली कुंज ट्रस्ट' की स्थापना की, जो एक गैर-लाभकारी संगठन है। इस ट्रस्ट का उद्देश्य समाज और उसके लोगों के उत्थान के लिए कार्य करना है, जिसमें तीर्थयात्रियों को आवास, भोजन, वस्त्र, चिकित्सा देखभाल और अन्य आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करना शामिल है।
आध्यात्मिक शिक्षाएँ: महाराज जी ने अपने प्रवचनों में गुरु की महत्ता, ब्रह्मचर्य के पालन, और आध्यात्मिकता के माध्यम से व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों में सामंजस्य स्थापित करने पर जोर दिया है। उनकी शिक्षाएँ युवाओं को नैतिक और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।
श्री प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आध्यात्मिक साधकों के लिए प्रेरणास्रोत हैं, जो भक्ति, सेवा, और समर्पण के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें